08 January 2009

बरस.......... बरस...........



बरस..... बरस.....

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बरस.......... बरस...........

बरस बरस कई बरस,
मत तरस केवल बरस,
बरस बरस और बरस,
कई .....बरस,

घटा अभी घटा नहीं,
हट मत घट मत,
सोच जरा,
बेबस धरा पर जरा,
थक मत हट मत,
घटा अभी घटा नहीं,


हर कदम हर कदम,
टूटती आशा निकलते है दम,
पर,
टूट हर दम ........,
बस कर बढ़ चल,
बस एक और कदम,
मन की आश कर निराश,
कामयाब और कामयाब,
बढ चल एक और कदम,

बेसब्र देश भर .....,
कला धन,
अपराधी मन,
पद को कर बदनाम,
न्याय की आश.......,
टूटकर कहती है...,
बस.......!,
बरस बरस इस बरस,
अब बरस..... और बरस..,
बरस बरस इस बरस,
_____________--अम्बरीष मिश्रा
इस सार.... भरी कविता को पहली क्लास का बच्चा भी पढ़ लिख सकता है

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