28 February 2011

करोड़ पति कौन ?

नमस्कार ,
हरदोई में वकीलों ने किया माया को काले झंडे दिखने का संकल्प तो सड़क से बद्लागया
मार्ग कोर्ट के सामने लगाई गयी सभी बल्लियाँ उखाड़ ली गयी और माया का रास्ता बदल दिया गया .

कल माया आ रहीं है पर क्या होगा कल ये कल ही पता चलेगा इस लिए कल का इंतज़ार करना पड़ेगा |

आज कल बाबा रामदेव के धन के बारे में चर्चा रही है |
बाबा रामदेव ने कहा कि हमारे  पास कोई बैंक अकाउंट नहीं है और न ही कोई जमीन
बैसे बाबा राम देव ने बताया है कि उनके संस्था के पास 1100 के आस पास की सम्पति है |

और कुछ बाबा है हमारे देश में जानते है उनके बारे में कि कितना धन है उनके पास
बाबा आशाराम लगभग 5000  करोड़
श्री सत्य साईं  लगभग 10000 करोड़   और ये सबसे बड़े हिन्दू बाबा में गिने जाते है
अम्मा नाम से है उनके बारे में कहा जाता है कि वे  3000  करोड़ रु
ये है क्यच नाम हिन्दू लोग से जुड़े बाबा लोगों से
पर इनके साथ
अन्य समुदाय के लोगों के नाम नहीं है
ये मुस्लिम हो सकते है
ये शिख हो सकते है
ये पारशी हो सकते हिया
ये  जैन हो सकते है
ये  इसाई  हो सकते है .
पर ये क्यों है और
इन सब को विदेश से सीधे  धन उप्लाभध होता है
तो कितना धन आता है और क्यों ?

कहा जाता है कि चुनाव के लिए पहल ये रास्ता था कि किस परकार से
धन को लाना है और चुनाव में काला चुनाव बनाना है |





27 February 2011

आज ब्लोग कि महिमा जानने के लिये किया है एक नया काम ,
ई मेल के जरिये कर रहे है ब्लोग बनाने का इन्त्जाम


--
अम्बरीष मिश्रा

17 February 2011

कुत्ता पाला, खुजली वाला,

करुणानिधि ने कुत्ता पाला, खुजली वाला,

उसको दिल्ली ले के आये, मनमोहन लाला.

कुत्ते ने वो गंद मचाया, किया हर जगह गू,

पूरे भारत में फ़ैल गयी उसकी बदबू.

वहीं बैठा था एक स्वामी ध्यान लगाए,

इस बदबू ने उसके भी नथुने फढ़काए.

उसने मनमोहन को बोला इसे भगाओ,

इससे कहीं प्लेग न फैले देश बचाओ.

मनमोहन तो भैय्या कुर्सी के ऐसे पिस्सू ठहरे,

स्वामी के आगे बन गए जैसे गूंगे-बहरे.

स्वामी तब गुस्से में हो गए दुर्वासा,

मनमोहन की बत्ती गुल, फेंका ऐसा पांसा.

कलमाड़ी-राजा ने देश जैसा लूटा घनघोर,

हर्षद-तेलगी इनके आगे लगे चिंदी-चोर.

भारत चाहे कितनी भी कर ले तरक्की,

जब तक ये कीड़े जिन्दा, ज़लालत पक्की.


आप को हसी आ रही होगी वेशक आ सकती है
और आनी भी चाहिए क्योकि यही कलाकारी है
और अपने गुस्से को वयंग में बदल दिल्या है
श्री चिरकुट दास जी ने और ये है फेस बुक में
आप इनको जान सकते है

16 February 2011

मेरा पकता ब्लॉग .............

लिखूं या न लिखूं पर लिख दूँ तो कोई पद लेगा और अगर पद लेगा तो .... पढ़ लेगा पर इससे होगा क्या और अगर कुछ हुआ तो सम्हलेगा कौन । सब तो पड़ेंगे और कहेंगे कल अपने दोस्तों से और कुछ तो हस हस हस कर कुर्सी के निचे जा गिरे तो क्या होगा । उनका नुक्सान और अपने ब्लॉग कि बदनामी कि उनके ब्लॉग के reader कितने गिरे हुए है और कही ये खबर आग पकड़ ले ( वैसे अभी तक राज है कि कौन से खबर आग पकडती है नहीं तो मिडिया बस वही दिखाए और आग लगा दे ) तो खबर या लेख fire proof होना अति आवस्यक है । इसके लिए तो फिर हमें अग्निसमन विभाग का फॉर्म भरना पड़ेगा और ससे यह प्रमाण पत्र लेना पड़ेगा कि कही आग भड़के तो यह भी ठीक है कि मैं एक ईशा बोलग लिखूं जिसमे कोई आगा न भड़के और न ही कोई ब्लोगेर महान पुरुस / स्त्री कही गिर न जाए अपने बोलग को शायद किसी बिजली भिभाग के अभियंता से प्रमाण पार्ट लेना भी पड़ सकता है कही मेरे ब्लॉग से किसी को झटका लग गया तो , और भाई ये झटका मत पुचो जिसको लगा वो गया ।
तो एक प्रमाण पात्र अग्निसमन से एक प्रमाण पत्र विजली बिघाग से एक परमान पत्र अस्पताल से भी लेना होगा
अब आप तो यही पूछो गे कि अस्पताल से क्यों तो मैं ये भी बता दूँ कि ब्लॉग लम्बा हुआ और आदमी एक साक में पड़ने कि चाहत रखता हो तो पूरा नहीं पड़ पाया तो या फिर कोई बात उसको आघात पंहुचा दे तो कि उसको अदमित होना पड़े इस करण हमारे चिकित्सा अधिकारी का प्रमाण पत्र का भी अनिवार्य अंग होता है |


पर मेरे इस पकोऊ ब्लॉग पोस्ट का नाम क्या रखूं
मेरा बोलग पाक गया है आप इसे सीघ्र पड़े अन्था ये खरब हो जायेगा ताजे ब्लॉग अच्छी मानशिक सकती प्रदान करते है



जाते जाते ....................

अगर सोचो कि उस्जमाने में इन्टरनेट आजाता या मोबाइल आजाता जिस ज़माने में फ़ोन में एक handil लगा होता था और जितनी बात करनी होती थी तो उतना घुमाना पड़ता था जैसे पानी पीने के लिए जितना पानी चाहिए उतना ही उसको च्लायाजता है
वैसे ही अगर उस ज़माने में नेट या इन्टरनेट आता तो क्या होता ।
पता चला कि मैं एक गनते के बोलग लिखने के लिए रिक्से जैसे उपकरण पर पैदल मार मार कर नेट चलता रहत और लिखता रहता और कुछ उसी प्रकार हमरे दोस्त अजय कुमार झा जी जब रात में सोते तो उनकी पत्नी कहती अजी सुनते हो क्या हुआ तो वो कहते कि क्या बताये जरा एक लेख लिख रहा था तो पैर दर्द कर ने लगा
जहान एक और चैटिंग करते समय उँगलियाँ चलती वही दूसरी और उस नेट को चलने के लिए अपने इन्टरनेट उपकरण को पैदल मार मार कर मार मार कर चैटिंग कि जाती तो मेरे पडोश में रहने वाले लोगो तो यही कहते कि कंप्यूटर पे चाटिंग करने से अच्छा होता कि आप रिक्शा चला कर खुद ही आ जाते हम भी बहार घूम आते ।
इसी प्रकार से और भी बाते होती ।

आप कि क्या राय है

अम्बरीष मिश्रा

मुद्दा

हमारे देश में जो भी क़ानून है वो सभी पछिम देशो कि uapaj है । वहाँ के परिधान में यहाँ कि गर्मी के समय में भी क़ानून वाय्व्था चलती है । इसका अनुसरण कितना तगड़ा है यही सोचा जा सकता है ।

पर बहुत से क़ानून लाने में ये सरकारे बहुत कमज़ोर है जो कि साफ़ पता चलता है
सूचना का अधिकार का कानून इस परकार नहीं आया इसके पीछे बिल लाया गया गया
और ये उपज थी " अरविन्द कज़रिवल " की अरविन्द कज़रिवल जी एक बहुत बड़े समाज सुधारक है
जिन्होंने सूचना का अधिकार लाये

इसी पकार कई क़ानून है लोगों और वकीलों की भलाई के लिए
इस के लिए बकील समाज को अपने मुद्दे खुद उठाने होंगे ...


अमेरिका में एक सिविल कानून में है कि कोई अगर केस करता है तो उसे आने कि जरुरत नहीं है और उसका केस का एक भी khrcha उसे करने कि जरुरत नहीं है ये सब बकील करेगा । claint तो केवल उस मिलने वाली रकम में हिस्स्सेदारी निभाएगा और पैसा एक भी नहीं लगाएगा और न ही तारीखों पे आएगा ।

जानकारों के मन में कुछ उठा पाठक चलने लगी है पर ........ बात अभी बाकी है
किसी करण कोई लेट हो गया जिससे उसे नुक्सान हुआ तो इसके लिए

भारत में
उसने वाद लाया और फिर महीनो तारीख पे आना और उस के लिए अपना समय गवाया पैसा गवाया और फिर जो फिसला आया उसके मुताबिक एक परेशानी के लिए पूरे समय को दोषी ठहरता है और वो उस लाइन में लग जाता है जिसका कोई अंत नहीं मालूम होता है जैसे कुछ केस ख़तम होने से पहल आदमी ख़तम हो जाते है ।

अमेरिका में


पहले तो वो किसी अधिवक्ता से मिलेगा अपनी परेशानी बताएगा और फिर अधिवक्ता उसे हां या ना कहेगा क्योकि
वहां ये तय होता है कि अगर केस जीतता हूँ तो उसका 20 - 30 or 50 % मैं अपनी फीस के नाम पे ले लूँगा ।
और ये सब लिखित होता है उसके बाद अधिवक्ता उस केस से सम्बंधित साबुत जमा करत है और उसकी फीस खुद जमा करता है ( ये भारत में नहीं होता है ) और पूरा केस खुद लड़ता है अगर हार जाता है तो clint से मतलब नहीं होता कि वो वकील साहब का नुक्सान दे और हाँ अगर जीत जाता है और मुआवजा के रूप में मिलने वाले लाखो रुपये में उसका हिस्सा उसकी फीस होती है ।
तो जब claint को परशानी नहीं होती तो वो केस करने में नहीं हिचकिचाता है ।



भारत में अगर ये क़ानून बना दिया जाये तो वकील कि pozition और भी अच्छी हो सकती है और गरीब भी बेधड़क अपना हक माग सकता है

यहाँ पे यह सुभिधा मुफ्त कानूनी सहायता केवल अनसुचित जाती, जन जाती, महिलाये, बह्चे, विकलांग आदि लोग है इस के लिए क़ानून में 1985 /1995 के क़ानून में परिभाषित किया गया है


पर जरा सोचिये कि कोर्ट में महिलाये बच्चे या विकलांग पूरे दिन कैसे nayayalay में कैसे रहेगा क्योकि महिला है तो खाना बनाना बचो के लिए ये सब नहीं हो सकता है


और अंत में .. . . . . .. . . .


अगर आ जायेगा वो क़ानून यहाँ
तो बकिलो कि हस्तियाँ बन जाये
न हो अँधेरा यहाँ हर कोई सजग हो जाये
घूस को चूस लो उस जहर कि तरह जो
सपेरा जहर निकलता है बचालो अपनी
अर्थवव्स्था , यही तुम्हारा कमाऊ पूत है

( ये जिन्दा रहेगा तो आप फलेंगे फूलेंगे हमारी अर्थ वाव्स्था में
भ्रस्ता चार जहर की तरह है )



अम्बरीष मिश्रा

06 February 2011

ताकत :
ताकत की ताक
फिर चुनाव की खाक
गाव गाव चुनाओ की काव काव
वो रत्तू तोता हरी वर्दी वाला
...काले कौए का मुह वोला साला
उस्को नकल की अकल है
पर है तो नकल ही

पिछ्ले पाच साल
थे कैसे हालात
देश 10 % कि दर से वद रहा था
और हम उस्से अछुते
इन पाच सालो मे
50 % पिछड गये

ये क्यो हुआ क्योकि विपछ खामोश था
और इसी क जन्ता मे रोश था

अब कौन करेगा
काव काव गाव गाव . . . . . .

कभी सोचा न था ......... कि आप भी.... मेरे ब्लोग पे होंगे !