23 October 2009

अंत कब तक ...........

सब कुछ खलाश
जिन्दगी एक लाश
बातें बकवास
घर बनवास
किताबे उपन्यास
agan kavristaan
फ़ोन bana janjaal
pani कला पानी
हर पर एक नयी चाहत
और धुन्धता हूँ में
एक कोना
एक बिछोना
कुछ सिसकियाँ
कुछ रोना
दुनिया से दूर
एक ........
नयी दुनिया की तलाश
मेरी जिन्दगी मेरी तलाश

21 October 2009

अब चीनी भी कडुई है ........

जैसा की आज कल दिखाई दे रहा है की
मंदी की मार पर युद्घ का बार किया जाने की तयारी
सच पुछू की हमारी चीनी अब बीमारी लग रही है
पडोशी से ख़त पट के करण पकिस्तान के अब्बा जान
ओसामा और लस्करऐ तैबा से परेशान भारत
को चीनी ने भी मारा एक चोर पर कश्मीर
तो दुसरे पर अरुणाचल बेचारा
हालत पर नही रहा कंट्रोल तो
कल नेपाल भूटान माल दीप श्रीलंका
जैसे भी सर उतयंगे
अभी तो दार्जलिंग कल लखनऊ अपना बताएँगे

यही हाल रहा तो हम जल्द ही कानपुर के लोगो में विदेशी और
लखनऊ के लोगों में काफिर / शरणार्थी कहलायेंगे
हमारे
PM मैडम कि टाक में होंगे
और मैडम के पास हिन्दी लिखे लेत्तर हाथ में होंगे

ये हाल क्या है
सब माया जाल है
भ्रस्टाचार में सब जंजाल है
गरीव मर रहा और अधिकारी माला माल है

जय हिंद

19 April 2009

दुख बड़े काम की चीज है,

दुख बड़े काम की चीज है,
दुख ना हो तो कोई किसी को याद नहीं करेगा,
कोई प्रभु से फरियाद नहीं करेगा।
सुख चालाक है भटकाता है ,
अपने पते पर कभी नहीं मिलता।
दुख भोला-भाला है,
दूसरों के पते पर भी मिल जाया करता है।
दुखी बने रहो कोई ईर्ष्या नहीं करेगा,
सुखी हो गये तो संसार नही सहेगा।
जिंदगी को जहाँ छुओ घाव ही घाव है,
दुख में जिंदगी के स्थायी भाव है।
दुख अंतरंग है,सदा संग-संग है।
सुख तो उच्छ्रंखल है,
दुख में तमीज है,
दुख बड़े काम की चीज है।

पर ये दुःख मेरा सकलन मात्र है न की रचना

भैंस चालीसा

भैंस चालीसा
महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते

ये मैंने नही लिखा या मेरी रचना नही है

16 April 2009

लिखते लिखते थक गए हाथ ,
गुजरा दिन गुजरी रात ,
कुछ लिखने की बात
पर न बने हालत ,
तब मैंने बनाया
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,


जज्बात बह रहे थे
पर कैसे बदले हालत सब मौन थे
फिर मेरे भाई
तब मैंने बनाया
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,


तुम लिखोगे तो क्या होगा
जब अच्छे अछ्के बिक गए
जब कलम भी घिस गयी
और न बदले हालत
तब मैंने बनाया
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,


आप परेशां न हो
टेंसन न ले
क्यकी आने वाला कल
कर देगा बरबाद
तब मैंने बनाया
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,

मैं बोलूँगा बिस घोलूँगा
बदलूँगा हालत
कल आज और कल
अपनी ताक़त के साथ
तब मैंने बनाया
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,

ये बिस कुछ नया कर दिखायेगा
बदलेगी कल की सूरत
और बदलेगा इतिहास
पर कैसे बदले हालत
केवल और केवल जाने
मेरा ब्लॉग मेरी बात ,

"अम्बरीष मिश्रा" अब आपके साथ

16 March 2009

ये शहर हैं मेरा अपना, जिसका नाम है......... लखनऊ

वो हजरतगंज का समां, वो चौक की चाट,
वो मिनी महल की Ice Cream , वह उसमे थी कुछ बात,
वो राम आसरे की मिठाई, वो मधुर मिलन का दोसा,
वो Marksmen की पावभाजी और शर्मा का समोसा,
वो रिक्शा का सफर, वो नींबू पार्क की हवा,
वो बुद्धा पार्क की रौनक और दिलकुशा का समां,
वो January की कड़ाके की सर्दी, वो बारिशों के महीने,
वो गर्मी की छुट्टियाँ, जब छुटते थे पसीने,
वो होली की मस्ती, वो दोस्तों की टोली,
वो जनपथ का माहोल, वो गोमती की लहरें,
वो बोटक्लब का नज़ारा, वह उसके क्या कहने,
वो अमीनाबाद की गलियां, वो IT की लड़कियां,
वो नोवेल्टी की बालकनी और वो वाजपेयी की पूरियां,
वो Aryan का Chinese,वो Roverse का स्टाइल,
वो school की लाइफ, और वो कॉलेज की ज़िन्दगी,
वो Studyhall का रास्ता और वो कैंटीन की patties,
वो भूतनाथ की मार्केट, वो highway के ढाबे,
वो पुरनिया चौराहा, वो चारबाग स्टेशन………
इतना सब कह दिया पर दिल कहता है और भी कुछ कहूं,
ये शहर हैं मेरा अपना, जिसका नाम है......... लखनऊ

17 January 2009

जरा सोचिये कि ...................


जरा सोचिये कि ...................
  • 1,00,000 लाख किसी चुनाव छेत्र के वोट और पड़ने वाले वोटो की संख्या
  • 0,40,000 हज़ार (40 % ) पडे वोट
  • 8,000 जीतने वाला पयेगा क्योकि .....
  • चार बडे दल और निर्द्लीय मिलाकर पाच तो
  • 40,000 / 5 = 8,000
  • सब वोटो में जीतने वाला पयेगा केवल (लगभग ) 8% वोट
  • ( ये 8% लोग होते है सरकारी कर्मचारी + गुन्डे + द्लाल जिन्को सरकार के उस व्यकित् को जीतना होताहै जो कि इन्के अपने काम मे रोडा लगाये और जिससे भ्रष्टाचार को मिले बढाबा ......। )
  • इससे एक बात तय होती है कि जितने वाले को { 100% - 8% = 92%}


  • =92% जनता का अपने छेत्र के नेता पर विस्वास नही है .........

  • दूसरी बात

  • केवल सन्सद मे ही विस्वास मत क्यो !
  • जिनको जनता ने वोट दिया है उन्को भी तो मौका दो ..............
  • मेरा कहने का मतलब है कि ..........
  • party no :1 = 8%
  • party no : 2 = 10%
  • party no : 3 = 5 %
  • party no : 4 =11 %
  • others : 5 = 7 %
  • --------------------
  • total = 40 %
  • ==============
  • जैसा कि मैने उपर कहा है कि ......
  • 40 % वोट मे 11% वाला जितेगा ..............पर 1,00,000 में ..... 50 % से अधीक अनिवार्य हो तो ,
  • party no :1(8%) + party no :5 (7%)+ party no :3(5%) = 20% + या पूरे का 50 % हो तो
  • मिल्कर सरकार बना सकते है
  • इसमे जो पूरे वोटिंग का 51 % जो स्द्स्य को समर्थन मिलेगा वो सरकार में जनता ka प्रेतीनिध होगा
  • मे जयेगा .... that is MLA / MP and others ( chairman etc)कलायेगा !
  • और एक नेता दुसरे नेता कि बुराई को छोड उसकी तारीफ़ कर्ता नज़र आयेगा और........
  • इससे नेताओ का जन्सम्पर्क बढेगा और जनता का फ़ायदा
  • इस प्र्कार तीन दलो के वोट देने वालो का फ़ायदाहोगा 51% से अधीक लोगो के छेत्र मे काम होगा ।
  • कि उन लोगो का जो थोडे से लोग जो अपने फ़ायदे के लिये सरकार बनते है
  • सरकार सब की होनी चाहिये जितने वोट डालने जाये उतनो की तो होनी ही चहिये .......... है कि नहीतो फिर अप्नी राय पोस्ट करे .... धन्य्बाद .... .........
  • आपका
  • अपना अम्बरीष ..............

08 January 2009

बरस.......... बरस...........



बरस..... बरस.....

Website templates


activities:


बरस.......... बरस...........

बरस बरस कई बरस,
मत तरस केवल बरस,
बरस बरस और बरस,
कई .....बरस,

घटा अभी घटा नहीं,
हट मत घट मत,
सोच जरा,
बेबस धरा पर जरा,
थक मत हट मत,
घटा अभी घटा नहीं,


हर कदम हर कदम,
टूटती आशा निकलते है दम,
पर,
टूट हर दम ........,
बस कर बढ़ चल,
बस एक और कदम,
मन की आश कर निराश,
कामयाब और कामयाब,
बढ चल एक और कदम,

बेसब्र देश भर .....,
कला धन,
अपराधी मन,
पद को कर बदनाम,
न्याय की आश.......,
टूटकर कहती है...,
बस.......!,
बरस बरस इस बरस,
अब बरस..... और बरस..,
बरस बरस इस बरस,
_____________--अम्बरीष मिश्रा
इस सार.... भरी कविता को पहली क्लास का बच्चा भी पढ़ लिख सकता है

इस कविता की फिल्म हो तो ......... देखना है तो {{☻}} click here


कभी सोचा न था ......... कि आप भी.... मेरे ब्लोग पे होंगे !