20 March 2011

internet ka pahla aghat

मेरा इन्टरनेट के माया जाल में आना एक दोस्त शैलेन्द्र sahu के मध्यम से हुआ ,
ये वक्त था सं 2002 जब मैंने पहल बार कंप्यूटर व इन्टरनेट को समझ ने की कोशिश की
पहली हिंदी वेब साईंत थी वेब दुनिया जिसको मैं पढ़ कर उत्साहित हुआ था कोयोंकी कोई भी चीज़ अगर
मात्र भाषा में हो तो वाह सबसे अधिक समय तक याद रहती है और कम समय में समझ में आ जाती है.
इसी करण अमेरिका जापान रुष जैसे देश कि हम चापलूशी करते  क्योकि वे अपनी हर काम को मात्र भाषा में करते है

पहली बार सोसल नेट्वोर्किंग साईट को मैंने कानपुर में देख और अपना पहला social networking a /c   को face book पे ही
बनाया पर उस समय ऑरकुट अधिक पीला था इस करण मुझे उस पर सुभिधा हुयी और ये हुआ सन 2007  में लास्ट तक मैं ऑरकुट पे भी था |
समय के साथ और तरकी  हुयी और सन 2008  के अंत में दिसम्बर में मुझे अपने घर पे नेट का पूरे दिन वाला कन्क्तिओन उपलभ हो गया था
brodband नहीं था उस समय |

ऑरकुट जीमेल और कई वेबसाइट को देखा इसके saath कुछ नेट के सॉफ्टवेर भी देखे पर वो पूरी तरह से समझ से बहार थे
थोडा बहुत काम चलाऊ नेट चलाना आ गया

समय के साथ ऑरकुट पर समस्या आने के बाद फिर से face book पर आना हुआ और ये आना और इस पर श्री अलोक तोमर जी से मिलना
सौभाग्य ही था उनके लेख ने मुझे परभाबित किया और बहुत हद तक मैं  facebook पे इसलिए ही देखता था कि कोई सनसनी खेज अलोक तोमर जी का लेख है या नहीं |
पिछली बार उन्होंने कह था कि कैंसर  सही  हो रहा है और जल्द ही वो कैंसर को मात दे देंगे
पर ये खबर बहुत ही चौकाने वाली है और अफसोस जनक है कि आज हमारे बीच एक महान लेखक नहीं रहा है
ये भगवान् को दोष देखर हम कुछ सच्चाई से मुह नहीं मोड़ सकते है कैंसर हमरी सरकार और कुछ विदेशीयो के कारण
कोई न कोई कैंसर से गरशित है और हम फिर खामोस   हो जायेंगे और ये ख़ामोशी उन चोरो को मौका देगी जो कैंसर के मध्यम से हमारा धन लूट लेते है और बदले में जल्द ही मौत देते है और हम उन समीकरण को ही जानते रहते है और वे हमें ही निवाला बनाते रहते है
वो चाहे ओक्टोसिं हो
वो कुछ kitnasak जो कि अमेरिका में बंद है पर yaahan बेचने का लाइसेंस है |
कुछ दवा  डिस्प्रिन इत्यादी शीधे हरदे और किडनी और कैंसर को दवात detee है अमेरिका में नहीं है पर
bharat में biktee है viks अमेरिका में नहीं है पर bharat में है
kyo ?
पर सवाल का समाधान नहीं है
कोयोकी वो स्लो पोग्जन के तरह हमें दिया जाता है और इलाज के नाम पे हमें खरीद लिए जाता है .|

मैं जाग चूका हूँ और आप कि partichha कर रहा हूँ





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अम्बरीष मिश्रा
मद मस्त इस तौहार में ,
न जीत में न हार में
केवल रंग हो प्यार के
पिचकारी के बौछार से
गुलाल से न लाल हो
...हरा से न हलाल हो
होली के रंगों से भरा ये साल हो

जो न खेले रंग उसे मलाल हो

आप को अम्बरीष की ओर से होली कि
विशेष रंग  भरी कविता से - होली की  मुबारक बाद

अम्बरीष मिश्रा


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अम्बरीष मिश्रा

कभी सोचा न था ......... कि आप भी.... मेरे ब्लोग पे होंगे !