16 February 2011

मेरा पकता ब्लॉग .............

लिखूं या न लिखूं पर लिख दूँ तो कोई पद लेगा और अगर पद लेगा तो .... पढ़ लेगा पर इससे होगा क्या और अगर कुछ हुआ तो सम्हलेगा कौन । सब तो पड़ेंगे और कहेंगे कल अपने दोस्तों से और कुछ तो हस हस हस कर कुर्सी के निचे जा गिरे तो क्या होगा । उनका नुक्सान और अपने ब्लॉग कि बदनामी कि उनके ब्लॉग के reader कितने गिरे हुए है और कही ये खबर आग पकड़ ले ( वैसे अभी तक राज है कि कौन से खबर आग पकडती है नहीं तो मिडिया बस वही दिखाए और आग लगा दे ) तो खबर या लेख fire proof होना अति आवस्यक है । इसके लिए तो फिर हमें अग्निसमन विभाग का फॉर्म भरना पड़ेगा और ससे यह प्रमाण पत्र लेना पड़ेगा कि कही आग भड़के तो यह भी ठीक है कि मैं एक ईशा बोलग लिखूं जिसमे कोई आगा न भड़के और न ही कोई ब्लोगेर महान पुरुस / स्त्री कही गिर न जाए अपने बोलग को शायद किसी बिजली भिभाग के अभियंता से प्रमाण पार्ट लेना भी पड़ सकता है कही मेरे ब्लॉग से किसी को झटका लग गया तो , और भाई ये झटका मत पुचो जिसको लगा वो गया ।
तो एक प्रमाण पात्र अग्निसमन से एक प्रमाण पत्र विजली बिघाग से एक परमान पत्र अस्पताल से भी लेना होगा
अब आप तो यही पूछो गे कि अस्पताल से क्यों तो मैं ये भी बता दूँ कि ब्लॉग लम्बा हुआ और आदमी एक साक में पड़ने कि चाहत रखता हो तो पूरा नहीं पड़ पाया तो या फिर कोई बात उसको आघात पंहुचा दे तो कि उसको अदमित होना पड़े इस करण हमारे चिकित्सा अधिकारी का प्रमाण पत्र का भी अनिवार्य अंग होता है |


पर मेरे इस पकोऊ ब्लॉग पोस्ट का नाम क्या रखूं
मेरा बोलग पाक गया है आप इसे सीघ्र पड़े अन्था ये खरब हो जायेगा ताजे ब्लॉग अच्छी मानशिक सकती प्रदान करते है



जाते जाते ....................

अगर सोचो कि उस्जमाने में इन्टरनेट आजाता या मोबाइल आजाता जिस ज़माने में फ़ोन में एक handil लगा होता था और जितनी बात करनी होती थी तो उतना घुमाना पड़ता था जैसे पानी पीने के लिए जितना पानी चाहिए उतना ही उसको च्लायाजता है
वैसे ही अगर उस ज़माने में नेट या इन्टरनेट आता तो क्या होता ।
पता चला कि मैं एक गनते के बोलग लिखने के लिए रिक्से जैसे उपकरण पर पैदल मार मार कर नेट चलता रहत और लिखता रहता और कुछ उसी प्रकार हमरे दोस्त अजय कुमार झा जी जब रात में सोते तो उनकी पत्नी कहती अजी सुनते हो क्या हुआ तो वो कहते कि क्या बताये जरा एक लेख लिख रहा था तो पैर दर्द कर ने लगा
जहान एक और चैटिंग करते समय उँगलियाँ चलती वही दूसरी और उस नेट को चलने के लिए अपने इन्टरनेट उपकरण को पैदल मार मार कर मार मार कर चैटिंग कि जाती तो मेरे पडोश में रहने वाले लोगो तो यही कहते कि कंप्यूटर पे चाटिंग करने से अच्छा होता कि आप रिक्शा चला कर खुद ही आ जाते हम भी बहार घूम आते ।
इसी प्रकार से और भी बाते होती ।

आप कि क्या राय है

अम्बरीष मिश्रा

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कभी सोचा न था ......... कि आप भी.... मेरे ब्लोग पे होंगे !